अमेरिका के राजदूत केनेथ आई. जस्टर ने कहा कि उनका देश भारत के साथ मौजूदा रक्षा कारोबार में कई गुना की वृद्धि चाहता है। इसके लिए सामरिक साझेदारी बढ़ाने के लिए तैयार है। किसी आपूर्तिकर्ता देश का नाम लिए बिना उन्होंने कहा कि सस्ते के बजाय टिकाऊ रक्षा उत्पादों को तरजीह दी जानी चाहिए। कॉर्पोरेट वर्ल्ड में ऑफसेट दायित्व (ऑब्लीगेशन) पर उन्होंने कहा कि उनका देश इसे ठीक नहीं मानता है। साथ ही कहा कि किसी भी देश में नियम बढ़ाने के लिए जरूरी है कि रुकावट वाले नियम-कायदे कम से कम हों।
भारत में अमेरिका के राजदूत जस्टर डिफेंस एक्सपो में हिस्सा लेने एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल के साथ लखनऊ आए हैं। उन्होंने मंगलवार को राजधानी में प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि डिफेंस एक्सपो रक्षा क्षेत्र में भारत के नवाचार और प्रतिभा को देखने का अद्भुत अवसर है। हम तमिलनाडू और उत्तर प्रदेश में स्थापित किए जा रहे डिफेंस कॉरीडोर में अपनी अधिक से अधिक भागीदारी चाहते हैं। अधिक से अधिक सहयोग करना चाहते हैं। इस तरह के आयोजनों के माध्यम से समान सोच वाले देश आधुनिक युद्ध क्षेत्र की प्रकृति के बारे में बेहतर समझदारी विकसित करते हैं।
जस्टर ने कहा कि हम साझे सुरक्षात्मक उद्देश्यों के लिए समान सोच वाले देशों के साथ मिलकर काम करने में यकीन करते हैं। उन्होंने कहा कि भारत हथियारों के बजाय प्रभावी, चुस्त और लचीले सिस्टम की ओर आगे बढ़ रहा है। हम विश्वास करते हैं कि भारत को अपने रक्षा साझीदारों के साथ नेटवर्क और उपकरणों के आदान-प्रदान की ओर रुख करना चाहिए। डिफेंस एक्सपो में जो अमेरिकी कंपनी हिस्सा ले रही हैं, वे युद्ध के दौरान खुद को साबित कर चुकी उच्चस्तरीय तकनीक आधारित उपकरण, यंत्र और नेटवर्क का उत्पादन करती हैं। ये कंपनियां जमीन और समुद्र पर काम कर सकने वाले एयरक्राफ्ट, बैलिस्टिक मिसाइल और रक्षा सिस्टम तैयार करती हैं। ये कंपनियां अमेरिका और उसके पार्टनर देशों के लिए उड़ान और सुरक्षा-संचार यंत्रकों का भी उत्पादन करती हैं। ये कंपनियां अपने ये उत्पाद भारत को भी मुहैया कराने के लिए तैयार हैं।
उन्होंने कहा कि ये अवसर भारत और अमेरिका की रक्षा इंडस्ट्री को एक-दूसरे को समझने का बेहतर अवसर है। एक-दूसरे के नजदीक आने का मौका है, जोकि भारत और अमेरिका के मजबूत संबंधों का आधार भी है। जस्टर ने कहा, मैं यूपी या भारत के जिस भी राज्य में गया हूं, देखा है कि रक्षा संबंधी समझौतों का बहुत ज्यादा स्कोप है। अमेरिका के राजदूत ने कहा कि डिफेंस एक्सपो में जो अमेरिकी कंपनियां हिस्सा ले रही हैं, वे यूपी और भारत में कई कंपनियों के साथ मिलकर काम कर रही हैं। ये कंपनियां सिर्फ हमारे दो देशों के लिए ही नहीं, बल्कि दुनिया के अन्य साझीदार देशों के लिए भी उत्पादन करती हैं। टाटा ने लॉकहीड मार्टिन के साथ और बोइंग ने हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड के साथ साझेदारी की है।
जस्टर ने कहा कि हम साझे सुरक्षात्मक उद्देश्यों के लिए समान सोच वाले देशों के साथ मिलकर काम करने में यकीन करते हैं। उन्होंने कहा कि भारत हथियारों के बजाय प्रभावी, चुस्त और लचीले सिस्टम की ओर आगे बढ़ रहा है। हम विश्वास करते हैं कि भारत को अपने रक्षा साझीदारों के साथ नेटवर्क और उपकरणों के आदान-प्रदान की ओर रुख करना चाहिए। डिफेंस एक्सपो में जो अमेरिकी कंपनी हिस्सा ले रही हैं, वे युद्ध के दौरान खुद को साबित कर चुकी उच्चस्तरीय तकनीक आधारित उपकरण, यंत्र और नेटवर्क का उत्पादन करती हैं। ये कंपनियां जमीन और समुद्र पर काम कर सकने वाले एयरक्राफ्ट, बैलिस्टिक मिसाइल और रक्षा सिस्टम तैयार करती हैं। ये कंपनियां अमेरिका और उसके पार्टनर देशों के लिए उड़ान और सुरक्षा-संचार यंत्रकों का भी उत्पादन करती हैं। ये कंपनियां अपने ये उत्पाद भारत को भी मुहैया कराने के लिए तैयार हैं।
उन्होंने कहा कि ये अवसर भारत और अमेरिका की रक्षा इंडस्ट्री को एक-दूसरे को समझने का बेहतर अवसर है। एक-दूसरे के नजदीक आने का मौका है, जोकि भारत और अमेरिका के मजबूत संबंधों का आधार भी है। जस्टर ने कहा, मैं यूपी या भारत के जिस भी राज्य में गया हूं, देखा है कि रक्षा संबंधी समझौतों का बहुत ज्यादा स्कोप है। अमेरिका के राजदूत ने कहा कि डिफेंस एक्सपो में जो अमेरिकी कंपनियां हिस्सा ले रही हैं, वे यूपी और भारत में कई कंपनियों के साथ मिलकर काम कर रही हैं। ये कंपनियां सिर्फ हमारे दो देशों के लिए ही नहीं, बल्कि दुनिया के अन्य साझीदार देशों के लिए भी उत्पादन करती हैं। टाटा ने लॉकहीड मार्टिन के साथ और बोइंग ने हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड के साथ साझेदारी की है।
भारत में पैदा हो रहीं नौकरियां
जस्टर ने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच रक्षा संबंधी सहयोग लगातार मजबूत हो रहा है। दोनों देशों की कंपनियों के बीच रक्षा व्यापार से भारत में रोजगार के अवसर पैदा हो रहे हैं। हम रक्षा क्षेत्र में भारत के साथ उत्तरोत्तर सहयोग बढ़ाना चाहते हैं।
कम होनी चाहिए ऑफसेट दायित्व की कैपिंग
रक्षा सौदों में ऑफसेट दायित्व पर उन्होंने कहा कि भारत में यह नियम है, जिसे कंपनियां पंसद नहीं करती हैं। ऑफसेट दायित्व के तहत कंपनियां खुद निर्णय लेती हैं। इसमें हमारी सरकार की कोई भूमिका नहीं होती है। उन्होंने ऑफसेट दायित्व के तहत निवेश करने की कैपिंग जितनी कम होगी, उतना ही ज्यादा निवेश आएगा। ज्यादा निवेश आने के लिए नियम-कायदे कम से कम होना चाहिए।
मैन्युफैक्चरिंग हब के लिए बढ़ाएं सहयोग
जस्टर ने कहा कि भारतीय रक्षा कंपनियों में आगे बढ़ने की काफी संभावनाएं हैं। भारत को वैश्विक विनिर्माण हब बनाया जा सकता है। लेकिन, यह काम रातोंरात नहीं हो सकता है। इसके लिए भारत को अमेरिका के साथ साझेदारी करनी चाहिए, ताकि अधिक से अधिक निवेश आ सके। उन्होंने कहा कि भारत का स्वेदशीकरण पर काफी जोर है। इसकेलिए जितना निवेश चाहिए, वो अकेले संभव नहीं है। इसलिए अमेरिका ने भारत को अधिकाधिक साझेदारी का प्रस्ताव दिया है। उन्होंने कहा कि अमेरिका के रक्षा उत्पाद लंबे समय चलने वाले होते हैं।
80 बिलियन डॉलर पहुंचाना चाहते हैं रक्षा कारोबार
भारत में अमेरिका के राजदूत ने कहा कि भारत का अमेरिकी रक्षा उत्पाद कंपनियों के साथ 18 बिलियन डॉलर का कारोबार है। संवाददाताओं ने पूछा एट्टीन (18) या एट्टी (80)? इस पर जस्टर ने हंसते हुए कहा कि इसे हम 80 बिलियन डॉलर तक पहुंचाना चाहते हैं। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि अमेरिकन सरकार कोई भी एमओयू साइन नहीं करती है। अमेरिकन कंपनियां ही किसी अन्य देश में ये समझौते करती हैं।
ट्रंप की भारत यात्रा के बारे में आधिकारिक जानकारी नहीं
एक सवाल के जवाब में जस्टर ने कहा कि अमेरिका भारत के साथ अपने रिश्तों को नई बुलंदियों पर पहुंचाना चाहता है। ट्रंप की भारत यात्रा के बारे में अभी कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई है।
कोरोना वायरस से निपटने के लिए दे रहे हरसंभव मदद
जस्टर ने कहा कि कोरोना वायरस के मामले में छवि खराब करने के चीन के अमेरिका पर आरोप ठीक नहीं हैं। हम उन्हें इस समस्या को जड़ से समाप्त करने के लिए हरसंभव मदद दे रहे हैं। प्रेस कॉन्फ्रेंस में चीफ ऑफिसर ऑफ डिफेंस कॉर्पोरेशन कैप्टन डैनियल फिलियन और डिफेंस अटैशी आईलीन लॉबाकर भी मौजूद रहे।
जस्टर ने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच रक्षा संबंधी सहयोग लगातार मजबूत हो रहा है। दोनों देशों की कंपनियों के बीच रक्षा व्यापार से भारत में रोजगार के अवसर पैदा हो रहे हैं। हम रक्षा क्षेत्र में भारत के साथ उत्तरोत्तर सहयोग बढ़ाना चाहते हैं।
कम होनी चाहिए ऑफसेट दायित्व की कैपिंग
रक्षा सौदों में ऑफसेट दायित्व पर उन्होंने कहा कि भारत में यह नियम है, जिसे कंपनियां पंसद नहीं करती हैं। ऑफसेट दायित्व के तहत कंपनियां खुद निर्णय लेती हैं। इसमें हमारी सरकार की कोई भूमिका नहीं होती है। उन्होंने ऑफसेट दायित्व के तहत निवेश करने की कैपिंग जितनी कम होगी, उतना ही ज्यादा निवेश आएगा। ज्यादा निवेश आने के लिए नियम-कायदे कम से कम होना चाहिए।
मैन्युफैक्चरिंग हब के लिए बढ़ाएं सहयोग
जस्टर ने कहा कि भारतीय रक्षा कंपनियों में आगे बढ़ने की काफी संभावनाएं हैं। भारत को वैश्विक विनिर्माण हब बनाया जा सकता है। लेकिन, यह काम रातोंरात नहीं हो सकता है। इसके लिए भारत को अमेरिका के साथ साझेदारी करनी चाहिए, ताकि अधिक से अधिक निवेश आ सके। उन्होंने कहा कि भारत का स्वेदशीकरण पर काफी जोर है। इसकेलिए जितना निवेश चाहिए, वो अकेले संभव नहीं है। इसलिए अमेरिका ने भारत को अधिकाधिक साझेदारी का प्रस्ताव दिया है। उन्होंने कहा कि अमेरिका के रक्षा उत्पाद लंबे समय चलने वाले होते हैं।
80 बिलियन डॉलर पहुंचाना चाहते हैं रक्षा कारोबार
भारत में अमेरिका के राजदूत ने कहा कि भारत का अमेरिकी रक्षा उत्पाद कंपनियों के साथ 18 बिलियन डॉलर का कारोबार है। संवाददाताओं ने पूछा एट्टीन (18) या एट्टी (80)? इस पर जस्टर ने हंसते हुए कहा कि इसे हम 80 बिलियन डॉलर तक पहुंचाना चाहते हैं। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि अमेरिकन सरकार कोई भी एमओयू साइन नहीं करती है। अमेरिकन कंपनियां ही किसी अन्य देश में ये समझौते करती हैं।
ट्रंप की भारत यात्रा के बारे में आधिकारिक जानकारी नहीं
एक सवाल के जवाब में जस्टर ने कहा कि अमेरिका भारत के साथ अपने रिश्तों को नई बुलंदियों पर पहुंचाना चाहता है। ट्रंप की भारत यात्रा के बारे में अभी कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई है।
कोरोना वायरस से निपटने के लिए दे रहे हरसंभव मदद
जस्टर ने कहा कि कोरोना वायरस के मामले में छवि खराब करने के चीन के अमेरिका पर आरोप ठीक नहीं हैं। हम उन्हें इस समस्या को जड़ से समाप्त करने के लिए हरसंभव मदद दे रहे हैं। प्रेस कॉन्फ्रेंस में चीफ ऑफिसर ऑफ डिफेंस कॉर्पोरेशन कैप्टन डैनियल फिलियन और डिफेंस अटैशी आईलीन लॉबाकर भी मौजूद रहे।